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२६ देववंदन नाष्य अर्थसहित. के) संस्थित एटले रही ने जेनी एवा प्रकारे र हेवे करी (जोगमुद्दत्ति के ) योगमुश इति एटले योग मुश एम होय. ए पहेली योगमुशनुं स्व रूप कयुं ॥१५॥
हवे बीजी जिनमुशनुं लक्षण कहे जे.
चत्तार अंगुलाई, पुरन कणाइं जब पचिमन ॥ पायाणं नस्सग्गो, एसा पुण होइ जिणमुद्दा ॥ १६ ॥ ___ अर्थः-(जन के) यत्र एटले जिहां (पाया णं के) पगना जे (पुरन के) आगलना अंगु लिनी बाजु तरफना पहोचाने माहोमांहे ( चनारि अंगुलाई के ) चार आंगुलनो प्रांतरो राख्यो होय, अने पगना (पछिमन के) पाग्लनी पा नीनी बाजुना नागमां मांदोमांहे चार आंगुलथी कांक (ऊपाइं के० ) कसो आंतरोराख्यो होय. • ए रीतें पग राखीने (नस्सग्गो के०) कानस्सग्ग करीय (एसा के० ) एप्रकारे (पुण के ) वली (जिणमुद्दा के) जिनमुज्ञ ( होइ के०) होय ।।