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________________ २५० पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. प्रमुख खटाशे सहित उध ऊष्ण करे, अथवा ए लोक नाषाये दूधमा खटाश होय, तेमाटे एने फे दरी कहे , अथवा त्रश दिवस प्रसूत गोकुग्ध ब लही बलहटां ते (कुट्टी के ) सुट्टी कहीये, ए पांच (5६ के०) पुग्धना (विगगया के) विकृतिगता एटले निवियाता जाणवा, नेदांतरे, एना पण बीजा नेदो थाय ठे ॥३॥ हवे घृतविगइ तथा दहीविगइना पांच पांच निवियाता कहे . निजण वीसंदण, पक्कोसहि तरिय किट्टि पकघयं ॥ दहिए करंब सिहरिणित, सलवण दहि घोल घोलवमा ॥ ३३॥ अर्थः-एक पक्वान्न तल्या पठी उतरयुं जे बलेखें घृत तेने (निप्रंजण के) निजण एटले निर्नजन घृत, पक्काननुं तलण घृत कहीये, बीजुं दहींनी तरी अने धान्यनी कणक बेहु एकग मेलवीने नीपजाव्युं जे व्य विषेश ते कुल्लरी इति नाषा सपादलक देश प्रसिह ते (वीसंदण के) विसंदन
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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