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२२ देववंदन नाष्य अर्थसहित. करो पर्यंकासने कानस्सग्ग मुशये मुक्ति गया ले माटे ज्योतिरूप अवगाहनानावबी.आ गाथामा नाविऊ ए क्रियापद सर्वत्र संगत करवू, ए पां चमु अवस्था त्रिक कर्वा ॥ १२ ॥ हवे बहुं त्रण दिशि जोवाथी निवर्नवार्नु
त्रिक कहे जे. नाहो तिरिआणं, तिदिसाण निरकणं चाहवा ॥पश्चिम दाहिण वामण, जिण मुह बन्न दिछि जुन ॥ १३ ॥ ___ अर्थः-श्रीजिनप्रतिमा जुहारतां प्रनु पर एकांत ध्यान राखवा निमित्तें एक (नमा के० ) ऊर्ध्वदिशि, बीजी (अहो के ) अधोदिशि अने त्रीजी (तिरिमाणं के) ती, दिशि, ते श्राप वलु ए (तिदिसाण के) त्रण दिशि- (निर स्कणं के) जोवु ( चश्ऊ के० ) गंम एटले वर्जन करवं. (अहवा के ) अथवा (पछिम के ) पाउली पूंनी दिशिये ( दाहिण के) ज मणी दिशियें तथा (वामण के)कावी दिशियें