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देववंदन नाष्य अर्थसहित. १ महोत्सव नाववो ते पण जन्मावस्थाज जाणवी.
तथा मालाधारादि, पुष्प, केशर, चंदन अने अलंकारादि चढावतां राज्यावस्था नाववी. बली भगवंतने अपगत शिरकेश, शोर्ष, श्मश्रु कूर्च रहित एवा मुख मस्तकादिक देखीने श्रमणाव स्थानी नावना नाववी. ए प्रथम उद्मस्थावस्था त्रण ने विवरीने कही.
तथा किंकली, कुसुमवृष्टि अने दिव्यध्वनि प्र मुख (पमिहारगेहिं के) पाठ महाप्रातिहार्य करीने एटले प्रातिहार्य युक्त भगवानने देखीने बीमी पदस्थावस्था एटले (केवलियं के) केव ली पणानी अवस्था नावीये. ___ तथा (पलियंक के० ) पर्यंकासने करी स हित एटले पलोंगी वालीने बेग एवा (नस्सग्गेहि के) कानस्सग्गीयाने आकारें (य के०) वली (जिणस्त के) जिनन बिंब देखवे करीने (सिइत्तं के.) सिइत्व एटले सिवाणानी अव स्था अर्थात् रूपातीतपणानी अवस्था प्रत्ये (ना विज के) नाववी. केम के ? केटलाएक तीर्थ