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________________ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. १५५ को स्तब्धपणुं राखतो वांदे, अथवा च्य नावा दिक चननंगीये करी स्तब्ध थको वांदे ते बोजो (थदिन के) स्तब्ध दोष. तथा जे वांदणांपा पतो नामुतनी परे तुरत नासे, अथवा वांदणां देतो अरहो परदो फरे ते त्रीजो (अपविके) अपविक दोष, तथा जे घणा साध प्रत्ये एकज वांदणे वांदे अथवा आवर्त्त, व्यंजन, अने आलाप ए सर्व एका करे, ते चोयो (परिपिमियं के) परिपिंमित दोष. (च के) वली जे तीमनी पेरे नबलतो एटले नपमी नपमा विसंष्टुल वांदे, ते पांचमो ( ढोलगई के) ढोलगति दोष. तथा जे अंकुशनी पेरे रजोहरणने बे हाथे ग्रहीने वांदे ते हो ( अंकुस के) अंकुश दोष. तथा जे कारबानीपेरे रिंगतो रिंगतो वांदे, ते सातमो (कबनरिंगिय के) कवनरिंगित दोष. तथा जे नन्नो थवेसीने जलमांदेला माग्लानी परे एकने वांदोने नतावलो उपी फरी बीजाने वांदे, अथवा पाठ प्रबन्न करे अथवा रेचकावत अनुलो म प्रतिलोम वांदे, ते आठमो (मधुबत्तं के)
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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