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________________ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. १११ कर्म बंधाय एटला माटें बीजु (चिश् के) चि तिकर्म, त्रीजु (किश्कम्मं के०) कृतिकर्म वांद गं. (च के ) वली नलां मन, वचन अने का यानी चेष्टानुं जे कर्म करवू, ते माटें चोथु (पू आकम्मं के०) पूजाकर्म कहिये, तथा विनयर्नु करवू ते माटें पांच, (विणयकम्मं के) विन यकर्म कहीये, ए पांच प्रकारे वंदन (च के ) वली (कायचं के) करएटले पांच प्रकारें वांदणां देवां ते (कस्स के) केने अर्थे देवां? (व के) वली (केशवावि के) केहने वादणां देकां? अपि शब्द निश्चयार्थमांडे. (काहेव के) केवारें वांदणां देवां ? (कश्कुत्तो के ) केटली वार वांदणां प्रापीयें ? ॥ ५ ॥ ___ कश्नणयं कसिरं, कहि व आव स्सएहिं परिसुद्धं ॥ कइदोस विप्पमुक्कं, कि कम्मं कीस किरईवा ॥ ६॥ अर्थः-वांदणाने विषे (कश्नणयं के ) के टला अवनत करवा, (कश्सिरं के) केटलीवार - - -
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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