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________________ हिंदी -भाव सहित (कवायसे हानि ) । २०९ इससे इष्ट साध्य के साधने में विघ्न भी अनिर्वाच्य उत्पन्न होते हैं । इसलिये भी यहां इसका मुख्य उल्लेख करके दिखाया है । क्रोधकृत हानिः - चित्तस्थमप्यनवबुद्धय हरेण जाख्यात्, क्रुद्ध्वा बहिः किमपि दग्धमनङ्गबुध्या । घोरामवाप स हि तेन कृतामवस्थां क्रोधोदयाद्भवति कस्य न कार्यहानिः ॥ २१६ ॥ अर्थ :- कामवासना, यह एक मनोविकार है । इसीलिये इसक नाम मनोम है । मन ही इसका निवास है । परंतु यह बात न समझकर महादेवने जब कि उन्हें कामने सताया तब क्रोधमें आकर सामनेकी किसी वस्तुको भस्म कर दिया; ऐसा जान पडता है । और उसीको समझ लिया कि हमने कामदेवको जला दिया । पीछेसे उस कामने उन्हें खूब सताया और अनेक तरह से अपमानित किया । वस, क्रोधके आवेशवश महादेवको वास्तविक ज्ञान व उसके नाशका उपाय सूझ नहीं सका। इसीलिये उन्हें इतने कष्ट सहने पढे । क्रोधके आवेशमें पढने से किसकी हानि नहीं होती ? क्रोधके वश जीव अंधा बन जाता है। कार्याकार्यविचार उसे नहीं रहता। इसलिये वह अनेक दुःख भोगता है । मान करने से हानि: चक्रं विहाय निजदक्षिणबाहुसंस्थं, यत् प्राव्रजन्मनु तदैव स तेन मुक्तः । hi तमाप किल बाहुबली चिराय, मानो मनागपि हतिं महतीं करोति ॥ २१७ ॥ अर्थ:- बाहुबली अपने सीधे हाथकी तरफ आकर ठहरनेवाले चrat छोडकर व सर्व परिग्रहको छोड़कर जैसे वे सन्यासी बने वैसे ही तत्क्षण मुक्त होसकते थे। उनके उस तपकी इतनी शक्ति संभव थी । २७
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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