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________________ १६० आत्मानुशासन. इंधन आगसे दूर पड़ा हुआ है उसे तो दूर ही रक्खा जाय और जो ईंधन आगके पास पडा है व जिसमें आग लगती जाती है उसे उठा उठाकर वहांसे दूर फेंका जाय । तो संभव है कि धीरे धीरे आग बुझ जायगी। इसी प्रकार संसारके अज्ञानी जन क्या करते हैं कि आशामें पडे हुए विषयोंको हटानेका प्रयत्न न करके आशाको कम करना चाहते हैं। जो विषय सामने दीख पडते हों उन्हीसे आशा प्रदीप्त होसकती है । आशाको इस प्रकार प्रदीप्त करनेवाले मौजूद विषयों को हटाना तो दूर ही रहा किंतु जो विषय स्वप्नमें भी संभव नहीं होसकते उनको इकट्ठा करनेकी खटपटमें लगते हैं । जब कि न मौजूद चीजोंको भी ला-लाकर अपने सामने इकट्ठा किया जाय तो आशा उलटी भडकेगी या कम होगी ? अज्ञानियोंकी इस उलटी चेष्टासे आशा कम कैसे होसकती है ? हाँ, जिन ज्ञानियों ने इसके नष्ट करनेका उपाय समझलिया उन्होंने अप्राप्त विषयोंके संग्रह करनेकी इच्छा तो छोड ही दी परंतु उस आशाके वीच पडे हुए विषयों को भी एक एक करके फेंकना सुरू किया जिससे कि उनकी आशा निर्मूल नष्ट होगई । अज्ञानियोंको जहां कि यह दीखता था कि इसके विना तो काम चल ही नहीं सकता है; इसीलिये इसकी तो आशा छूटना असंभव है; वे चीजें भी ज्ञानियोंने अपने मनमेंसे निकाल कर फेंक दीं। देखियेः विहितविधिना देहस्थित्यै तपास्युपहय,नशनमपरैर्भक्त्या दत्तं कचित् कियदिच्छति । तदपि नितरां लज्जाहेतुः किलास्य महात्मनः, कथमयमहो गृह्णात्यन्यान् परिग्रहदुर्ग्रहान् ॥ १५८ ॥ अर्थः- आशा जबतक नहीं छूटती तबतक राग द्वेष नष्ट नहीं हो सकते हैं । रागद्वेषके नाश किये विना कर्मबंधनसे छूटकर मुक्त होना असंभव है । इसीलिये ज्ञानी पुरुष आशाको निर्मूल नष्ट करने में
SR No.022323
Book TitleAatmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1916
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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