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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । हाथ विषै बेला बेला लेय छोटा बासनसों बोर बोर पानी छानै अरु वह नातना बेला ऊपर धर बहुर कूपसों पानी काढै फेर वाही भांति छानै जब बासन भर चुकै तब नातना हाथमें करि वानै पानी भर पाल ऊपर लिया लिया आवना नातिना ऊपर धरि धरि धीरेधीरे काढ़िये । पीछे अनछान्याका हाथकुं खोल अगल बगल सू कोना • पकड़ उलटौ करिये । पीछे छान्या पानी करि अविशेष अनछान्या पानी रह्या ता विष जीवानी करिये । अथवा जुदी वासना विष जीवानी करिये । बीचमूं जीवानीकी तरफ चिमठी करि नातिना रखड़िये नाहीं। पीछे चार पहर दिनका व आठ पहर दिनका जीवानी एकट्ठा कर भंवरकलीका डोल जाका वाका जल आया होय तिहि कूचे पहुंचावै । अथवा भंवरकलीका डोलन होय तो भंवरकलीका डोल बना चरूका लोटास भी पहुंचे है। वाका पांसानै उलटौ बांध पीछों डोरा अपूटी ल्याव पांच सात अंगुलकी लाकड़ी बांध लोटेके मौठे भीतर आड़ी लगाइयो ताका सहारासू लोटा सूध्या चल्या जाय, कुंवाके पीदे जल ऊपर लोटा पहुंचे तब ऊपरतूं डोल हिलाय दीजे । पीछे वह लोटेसूं लाकड़ी निकस औंधा होय ऊपर तै बैंच्या हुवा चल्या आवै ऐसे पहुंचावना । अथवा इ भांति भी न पहुंच्या जाइ तो सारा प्रभात सर्व पानीका जीवनी एकट्ठा कर पानी भरका बासन विषै घालिये अरु पनहारीकुं सौंपिये पनहारीनै पानी भरवाका महीना सिवाय टको दोटको बढ़ाइये अरु वाकुं ऐसा कहिये । जीवानै शुद्धता पूर्वक कुंवामें नाख दैनी। गैला वा ऊपरसूं कुंवा विषै जीवनै न नाखना कदाच नाख्या तौ तूनें पानी भरवासौ ही दूर करौंगा । ऐसो कहा पीछे
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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