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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार। लकड़ी विषै कीड़ी मकोड़ी देहीकांनखजूरा सर्प आदि अनेक त्रस जीव पैसजाई हैं। सो विना देखी बालिये तो सर्व भम्म होय । सो पार्श्वनाथ तीर्थकरके समै कमठ निर्दय हुवा पंचाग्नि तपै। तहां अधजल्या लकड़ी पोली विषै सर्पनी अई दग्धि हुई ताकू पार्श्वनाथ स्वामी अवधिज्ञान कर बलता देख्या ताकू नवकार मंत्र सुनाई देवलोकनै प्राप्त किया । ऐसे बिना देख्या बलताता विषै जीवका दग्धि जानना धनी कहा कहिये । बहुरि तलाव कुंड तुच्छ जलकर बहती नदी अरु कुंवा बावड़ीका पानी तो छान्या हुवा भी अयोग्य है। या जल विषे त्रसकी रास इन्द्रिय गोचर आवै है । तातै जा कुवांका पानी चड़स करि छटता होय ताका जल विष जीव नजर नाहीं आवै । वा जलको कुवा ऊपर आप ज य व आपका प्रतीतका आदमी जाय दोवड़ नातना गाढ़ा गुठलीकर रहित वा जामें जलकौ ग्रास हुवा एक पल भी रहै ततकाल ही ऐके साथ छन न जाय । अनुक्रम सौं धीरे धीरे छनै ऐसा नातनांसू जल छानिये ताका प्रमाण । जी वासण विषै छानिये ताका मुंहसू तिगुना लांबा चौड़ा डयोड़ा सो दोबड़ो बड़ो किये समचौकोर हो जाय ऐसा जानना । अथवा बिना छान्या ही कुंवासो भरि डेरै लै जाय । युक्ति पूर्वक नीका छानना, छानती बार अनछान्या पानीकी बूंद भी गिरे नाही वा अनछान्याकी बूंद छानै पानीपै आवै नाहीं ऐसे पानी छानिये । अनछान्या पानीके हाथसूं छान्या पानी करि अनछान्या पानीके बासनमें न धरिये । पीछे छान्या पानीका बासनकुं पकड़िये । दोय वार तीन वार छान्यां यानी करि बासनकू खोलिये । पाठे वाके मोड़े नातिना दौनिये वा
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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