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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । जीव विना एक अंगुल भूमिका न पाइये ता भूमिकाकू हल करि फेरिये सो भूमिका विदारवां करि सर्वत्र स्थावर जीवन प्राप्त होइ । फेरि पूर्ववत् नवा जीव उपनै पाछै दूजी वरसा करि वे भी मरनकू प्राप्त होइ । फेरि जीवाकी उत्पत्ति होइ फेरि हल करि हन्या जाइ ता भूमिका विष बीज बोवै पाछे सर्व जायगा अन्यके अंकूरा अनंन निगोद रासि सहित उत्पन्न होइ । फेरि वर्षा होइ ताकरि अगिनित त्रस थावर जीव उपनै फेरि निंदवा करि सर्व जीव हन्या जाइ, फेरि वर्षा करि ऐसी ही और उपजै । फेर धूप वा नुननी करि मरै ऐसे ही चतुर्मास पूर्ण होय । पाछै सर्व खेती त्रस थावर जीवा करि आश्रित ताकू दांतलादि करि काटिये । सो काटिवा करि सर्व जीवदल मल्या जाइ ऐसे तौ चतुर्मासकी खेतीका स्वरूप जानना । आगै उनारीकी खेतीका स्वरूप वा दोष कहिये है । सो सावनका महिनासूं लगाइ कातिक महिना पर्यंत पांच सात वार हल कुसिया फावड़ा करि भूमिकानै आमी सामी चुन करै पाछै वाके अर्थ दोय चार वर्ष पहली गुवार रोडीका संचय किया था । अथवा दोय चार वरसका एकठी हुई मोललै खेत विषै नाखे । सो वे रोडीका पापकी कोई पूछनी जेती वह रोडीको बोझ होय तेताही लटादिक त्रस जीव जानना । एक दोय दिनका गोबर पड़ा चोहडे रह जाइ ता विषै लाखां कोडयां आदि अगनित लटादि त्रस जीव किल किल करते आंख्यां देखिये है। तौ दोय चार बरसका संचय किया सैकड़ा गाड़ा भर गोबर विष्टा आदि अशुचि वस्तु ऊपरा ऊपर एकठी हुई सासती सरदी सहित ता विषै जाय पेखै तौ वाका निर्दयीपनाकी
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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