________________
ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
बंध राजा ताकी सेवा करें अरु कोटशिला उठावां सारखो यामें बल है। नाना प्रकारकी विभूति कर संयुक्त है । अरु निकट भव्य है। शीघ्र ही तीर्थकर पदको धर मोक्ष जासी सो भी रायराज अवस्था विर्षे नमस्कार करवो जोग्य नाहीं । नमस्कार करवा जोग्य दोय पद है। के तो निग्रंथ गुरुके केवलज्ञानी तासं मोक्षके अर्थ राजाने नमस्कार कैसे संभवे । और कृष्ननी गली गली में गोप्यां संयुक्त नाचता फिरा अरु वांसुरी बजावता फिरा इत्यादि नाना प्रकार क्रिया करी कहें सो कैसे हैं सोई कहिये है । भाईका सनेहकर बलभद्रनी स्वर्ग लोक सूं आप नाना प्रकारकी चेष्टा करी सो वह प्रवर्त चली आवे है । अरु जगतका यह स्वभाव है जैसी देखे जसी मानवा लाग जाइ नफा टोटा गिनें नाहीं सो अज्ञानताके बस जीव काई ये यथार्थ श्रद्धान न करै । अगे और कहे हैं कि ब्रह्मा विश्नु महेस तीनोंकी स्थापना छै तीन मिल सृष्टि रची है । कई या कहें हैं एक जोत छ तामाहि सों चोइन्द्री उतार निकस्या है कैई या कहें बड़ा बड़ी भई है कैई या कहै हैं कि चौवीस अवतार भये बतावे अरु चोईस पीर एकै कहै कहवा मात्र नामसंज्ञा है। पर वस्तु भेद नाहीं कैई गंगा जमुना सरस्वती गया गौमती इत्यादि सरताको तरन तारन माने हैं । कई तो पुष्कर प्रयाग आदिने तरनतारन माने हैं। कई गो आदिने तरन तारन माने हैं अरु गौ पूंछमें तेतीस कोट देव मानें कैई जल थल प्रथ्वी पवन वनसपति यानें परमेश्वरको रूप मानें कैईक भैरव क्षेत्रपाल हनूमान याने देव माने कैई गनेसने पारवतीको पुत्र माने अरु चन्द्रमा समुद्रको पुत्र मानें ऐसा विचारे नाहीं। जो गंगादि