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________________ % 3A 000 ज्ञानानन्द श्रावकाचार । २८३ 2 आदिके देखता महादेवके लिंगकी अरु पारवतीकी भगकी चौहटे निसक पूजा करें । अरु काहूकी हटकी म नें नाहीं। सो यह बात न्याय ही है सर्व संसारी जीवाके विषयका आसक्तता तो स्वयमेव मोहकर्मका उदयकर विना सिखाई बन रहे है पाछे जामें विषय पोखया जाय ऐसा कोई बतावे धर्म तो वह क्यों न करे । पन ऐसा जीवाके ज्ञान नाहीं कि जामें विषय पोख्या जाय तामें धर्म कैसे होय जो विषय कषायमें धर्म होय पाप कौन बातमें होय सो यह श्रद्धान अयुक्त है । आगे और कहे हैं कृष्ण सृष्टिका कर्ता अरु परमेश्वर है अरु पाछे वाकू ऐसे कहे हैं । कृष्णनी ढोर चराया अरु माखन चोर खाया अरु परस्त्रीसू रमया परस्त्रीमें क्रीड़ा करी तासू कहिये हैं रे बड़ा महन्त पुरुष होय ऐसा नीच कार्य कभी न करे यह नेम है । नीच कार्य करे तो बड़ा पुरुष नाहीं कार्यके अनुसार पुरुषोंमें नीचपनों दीसे है । ऐसा नाहीं कि नीच कारज करें प्रभुता होय वा ऊंच कारज करतां प्रभुता घटे यह जगतमें प्रत्यक्ष दीखे हैं एक दोय गांवका ठाकुर होते भी ऐसा निन्द कार्य करे नाहीं । तो बड़ा प्रथ्वीपति राजा देव वा परमेश्वर होय कैसे करे यह प्रकृति स्वभाव है बालक होय तरुन अवस्था कैसा वा वृद्ध अवस्थाका कार्य न करै अरु तरुन. होय बाल वा वृद्ध अवस्था कैसा कार्य न करे । वा वृद्ध होय तरुन होय बाल अवस्था का कार्य न करै । इत्यादि ऐसे सर्वत्र जानना सो कृष्णनीका प्रभुत्व सक्तिका वर्नन जैन सिद्धान्त विर्षे .. . वर्नन किया है । और मतोंमें ऐसा वर्नन नाहीं। सो वह कृष्ण-... जी तीन खंडका स्वामी है अरु घनादेव विद्याधर अरु हजारां मुकट ,
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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