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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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अरु कर्म रहित हूवा जीव केवल ज्ञान संयुक्त अनंत सुखका भोक्ता हो है । अरु तीन काल संबंधी समस्त चराचर पदार्थ एक समय विषे जुगपत जाने है । अरु दोई परमान आदि स्कंधकू असुद्ध पुद्गल कहिये है । अरु एकली परमानूने सुद्ध पुद्गलद्रव्य कहिये है । बहुरि तीन लोक पवनका वातविलाके आधार है,। अरु धर्म द्रव्य अधर्म द्रव्यका सहाई कहिये निमित्त है। अरु तीन लोक परमानूनका एक महास्कंध नामा स्कंद है। ताकर तीन लोक जड़ रहा है । वे महास्कंध केताइक तो सूक्ष्मरूप हैं। केताइक बादर रूप हैं । ऐसा तीन लोकका कारन जानना यहां कोई कहे ताका कारन तो कहा पन ऐता तीन लोकका बोझ अधर से रहे । ताकू समझाइये है रे भाई ए नोतिषी देवांका असंख्यात विमान अधर देखिये है अर बड़ा बड़ा पखेरु अधर आकासमें उड़ता देखिये है । सो ये तो नीका बने हैं अरु वासुकीरानाके आधारलोक मानिये सो यह न संभवे । जो वासुकी विना आधार काहे पै रहे अरु जो कंदाच वासुकीकू औरके आधार माने तो यामें वासुकीका कहा करतव्य रहा अनुक्रमतें परंपराय आधारका अनुक्रम आया है । तातें यह नेम संभवै नाहीं पूर्व कहा सोई संभव है । ये छहों द्रव्यका रचना जाननी ये छहों द्रव्य उपरान्त और कोई नाहीं । अरु छहों द्रव्य मांहीसू एकको कर्ता नमानिये। तो बने नाहीं सो ये न्याय संभवै है । ऐसे ही अनुमान प्रमानमें आवै है । याही ते आज्ञा प्रधानीसे परिक्षा प्रधानी सिरे कहा है। अरु परिक्षा प्रधान पुरुषहीका कार्य सिद्ध होय है। ऐसे षट् मत विषे जुदा जुदा पदार्थों का स्वरूप कहा है। परन्तु