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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । २३७ 5 पैलाको शरीर तो राख वोई दूर रही थे थांको शरीर तो पहिले राखो पाछे और का राखवाको उपाय कीजो था कीया भरम बुद्धि छे सो वृथा दुख हीके अर्थ छै थांने प्रत्यक्ष दीसे नाहीं । आज पहले ही लेही संसारमें कालसों कोई बचो अरु आगे बचसी हाय हाय देखो आश्चर्य की बात थे निर्मै भया तिष्ठों हो सो थांके कौन अज्ञानपनो छै अरु थांको कोई होनहार छें तामें थाने छू हूं थांने आपपरकी किछू खबर छै जो मैं कौन छा अरु किठासूं आया छा अरु पर्याय पूरी कर कहां जासी अरु पुत्रादिकसूं प्रीत करे छा सो कौन छा ऐते दिन पुत्र किठे छो अरु म्हांके. पुत्रकी क्षति हुई ताकर याका वियोगको म्हाने सोक उपजो, तासं अब थें सावधान होय विचार करो भूममें मन परो थें अपनो कार्य विचारो ताका सुख पावो परको कार्य अकार्य पेलाके हाथ है। थारों करतव्य क्यों भी नाहीं थें वृथा ही खेद खिन्न क्यो भया अरु थें अपनो आत्मा मोह कर संसारमें क्यों डूब्यो है संसार विर्षे नरकादिक दुख सब थेंने ही सहना पडेला जाका बदले किछू और न होसी जिनधर्मको ऐसो उपदेश है नाहीं | जो पाप करे कोई और भोगवे कोई और तासों मोने अपूठी थांकी दया आवे है । सो थें हमारी उपदेश ग्रहन करो थांने महा दुखदाई होय लो कैसे दुखदाई है । सो कहिये है म्हे तो यथार्थ जिन धर्मको स्वरूप जानो छो तीसों थांने भी मोह दुख देय छे अरु मैं मोह जिन धर्मका प्रताप कर सुलभपने जीतो सो यह जिन धर्मका अतिशय जानो तासों थाने भी जिन धर्मको स्वरूप विचारको कार्यकारी छै । देखो थें प्रतक्ष ज्ञाता दृष्टा छो अरु ये शरीरादि 1 1
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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