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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । namanna कोड़ उपवास किये कैसा फल एक जिनदर्शन किया होय है। अरु कोड़ वार जिनदर्शन किये बराबर एक दिन पूजन किये कर फल होय है । तातै निकट भव्य जीव हैं ते श्रीजीका नित दर्शन पूजन करो दर्शन किया बिन कदाच भोजन करना उचित नाहीं। अरु दर्शन किया बिन कोई मूढ़ बुद्धि सठ अज्ञानी रोटी खाय है सो वाका मुख सेत खाना बराबर है। अथवा सर्पकी वामी बराबर है जिह्वा है सोई सर्पनी है मुख है सो विलहै अरु कुभेषी कुलिंगी मिनमंदिर विषं रहते होंय ते वा मंदिर विषं भूलकर भी जियें नाहीं । वहां गये सरधानरूपी रतन जाता रहे वहां विशेष अविनय होय सो अविनय देखवे कर महापाप उपजे जहां जहां जो भेषी रहे तहां श्रीजीकी विनयका अभाव है। सो विनय सहित एक ही वार श्रीजीका दर्शन करिये तो महा पुन्य बंध होय अरु अविनय सहित ज्यों ज्यों घनीवार दर्शन करे त्यों त्यों घना घना पाप उपजे अपने माता पिताने कोई दुष्ट पुरुष अविनय करे जो आप समर्थ होय तो वाका निग्रह करे अरु अपने माता पिताने छुड़ाय विशेष बिनय करे अरु. जो अपनी समर्थता न होय तो वा मार्ग न जाय वाका बहुत दरेग करिये तैसे ही श्री वीतराग देवका जिनबिम्बका कोई दुष्ट पुरुष अविनय करे तो वाका निग्रहकर जिनबिम्बका विशेष विनय करिये । अरु अपनी समर्थता न होय तो वा अविनयके स्थान कदाच न जैये । जहां कुवेष्या रहै तहां घोर अनेक तरहको पाफ होय है । उहां जाने वारे कुवेष्याके पास गृहस्थ भी वाका उपदेश पाय वा सारखे ही अज्ञानी मूढ कषाई वज्रमिथ्याती होय
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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