SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । बर्तन कर एक श्रोनित कीजे पीछे अष्टांग नमस्कार ताका अर्थ तीन । मन वचन काय शुद्ध, दोय हाथ, दोय पग अरु. माथो नवावे वाको. अष्टांग नमस्कार कहिये । नमस्कार कीजे अरु तीन प्रदक्षना पहली दीजे । भावार्थ-अष्ट कर्मको ही नवाइये । अष्ट अंग कोन तिनके नाम । हाथ दोय । पग दोय । मस्तग। मन। वचन । काय । तीन ऐसे आठ अंग ताके उत्तर अघय अवयव मुख आंख कान अंगुली आदि उपंग जानने । भगवान सर्वोत्कृष्ट हैं तासको सर्व ही अंग उपंग नमाय नमस्कार करिये । सर्वोत्कृष्ट बिनै संधै है। बहुरि जिनवानी वा निग्रन्थ गुरू तिनको पंचांग नमस्कार करिये। पंचांग कौन दोन्यों गोड्या धरती सू लगाय दोन्यो हस्त जोड़ मस्तकसो लगाय हस्त सहित मस्तक भूम सू लगाय । यामें छाती पीठ नितंब विना पंच ही अंग नए तातै पंचांग कहिये। बहुरि पीछा खड़ा होय तीन प्रदक्षना दीजे एक एक प्रति एक दिसाकी तरफ पहली तीन आवर्त सहित एक एक श्रोनित कीजिये । पीछे सन्मुख खड़ा होय । स्तुत्यादि पाठ पढ़िये । पीछे अष्टांग दंडोतकर पीछे पगाही पगा होय । अपने घरको उठ आइथे । अरु निर्ग्रन्थ गुरू विराजे होंय तो नमोस्तु कीजे वाका मुख थकी धर्मोपदेस सुनीजे प्रस्नका निवारन करीजे अरु मंदिर विषं निनबानीका उच्चार होता होय तो सरधानी पुरुष मुख थकी शास्त्र श्रवन कर अपने डेरे आइये । असरधानी पुरुषका मुखसों शास्त्र सुनना जोग्य नाहीं। शास्त्र श्रवन किये विना न आइये । भावार्थ-जिन दर्शनकी क्रिया विषं तो अष्टांग नमस्कारवाला श्रोनित छत्तीस आवति
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy