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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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है। ताका स्वरूप कहिये है। संनमे तिया. संयम सो संयम दोय प्रकार है। एक इंद्रिय संयम एक दूसरा प्रान संयम सो इन्द्रिय संयम छः प्रकार है अरु प्रान संयम भी छः प्रकार है । पांच इन्द्री छटा मनको निरोध करे । षट्र कायकी हिंसा त्यागे ताको इन्द्रिया संयम प्रान संयम निःकषाया होनेको कारन है। निःकषाय है सो ही मोक्षका मारग है । संयम विना कदाचि निःकषाय होय नाहीं । निःकषाय विना बंध उदै सत्ताका अभाव होय नाहीं । तातै संयम ग्रहन करना योग है। एवं संयमका स्वरूप संपूर्न । आगे जिनबिम्बका दर्सन तथा नमस्कार कर कहा भेंट धरिये कैसे अस्तुत वा विनय करिये ताका स्वरूप विशेष कर कहिये है। दोहा-मैं वन्दों जिन देवको कर अति निर्मल भाव । करम बंधके छेदने और न कोई उपाव । या भांत चितवन कर प्रभातकी समायक किये पीछे लघु दीर्घ वाधा मेटि जल शुच करि पवित्र वस्त्र पहरे । अरु मनोज्ञ पवित्र य दोय - आदि अष्ट द्रव्य पर्यंत रकेवी विषे धर तंदुल धो रकेबीमें ले आप उ वयनायगा । चाम उनका स्पर्श विना महा हर्ष संयुक्त जिन मंदिर आवे । अरु जिन मंदिरमें घसता तीन सब्द ऐसे उच्चारे । जय निःसही । जय निःसही। जय निःसही। ताका अर्थ यह जो देवादिक कोई गुप्त तिष्टे होंय ते दूर हो । बहुरि तीन सब्द पीछे ऐसे उच्चारे । जय, जय, जय, पीछे श्रीजीके सन्मुख खड़ा होय । जो द्रव्य ल्याये तिनको रकेबीमें घर तीन वार फेर श्रीनीके सन्मुख खेपिये। पीछे रकेबीको दूर मेल दोनों हस्त जोड़ न्याले अरु पोले हाथ राख तीन आ