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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । १४५ AAAA विना कैसे बने बहुर मोक्ष तो बंधके अभाव होनेका नाम है। पूर्वे बंध होय तो मोक्ष होय । तातें बंधका स्वरूप बिशेष नानना। बहुर बंधका कारन आश्रव है। आश्रव विना बंध होता नाहीं। त.तें आश्वका स्वरूप नान्या विना कैसे बनें। बहुरि आश्रवका अभावने कारन संवर है। संवर विना आश्रवका निरोध होय नाहीं तो संवरको अवस्य जानना योज्ञ है । बहुरी बंधका अभाव निर्जरा विना होय नाहीं। तातै निर्जगका स्वरूप जानना । ऐसे तत्व जान्या विना नेमकर मोक्ष मारगकी सिद्धि कैसे होय । याही तें सूत्रजी विर्षे तत्वार्थ श्रद्धान सम्यक दरसन कहा है । सो यह सर्वत्र न्याय है। जी कारन कर उनका उपार्ष्या होय तिनसों विपर्ययकारन मेल्यां उलझाउ मिटै जैसे शीतके निमित्त कर बाई उत्पन्न भया। तो वाका विपर्ने उस्नके निमित्तते बाईकी निवृत्य होय । ऐंसा नाहीं के शीतका निमित कर उत्पन्न भया बायका रोगसो फेर सीतके निमित्त कर बाय मिटे सो मिटे नाहीं अधिक तीव्र बंध जाय । त्यों ही परदव्यातों रागहेप कर जीवनामा पदार्थ कर्मासू उलटो। सो वीतराग भाव किये विना सुलटे नाहीं । अरु वीतराग भाव होय सो सदा तत्वके स्वरूप जानने ते होय । तातें सप्त तत्वका जानपना ही निश्चे सम्यक होनेको ऐसा धारन आद्वैत एक ही कान कह्या। ऐसें सम्यक दरसनका खरूप जानना। ताते श्री आचार्य दयाबुद्ध कर कहें हैं वा हेतकर कहें हैं । सर्व जीव ही सम्यक दर्शनको धारो । सम्यक दर्शन विना त्रिकालमें मोक्ष नाहीं। चाहो तो तपश्चरन करो जी कार्य का ज्यों कारन होय ताही कारन तें वो कार्यकी. सिद्ध होय । ये सर्वत्र नेम है। इति सम्यक दर्सन प्ररूपन संपूर्ण।
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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