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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । १३७ वर्ननं । आगे कृत कारित अनुमोदना। मन वचन काय ये तीन करनी अरु तीन जोगाके परस्पर लपटन कर गुनचास भंग उपजे हैं जैसे भागाकार सावध जोगका त्याग करना होय । अरु आखड़ी आदि विरतका गृहन करना होय । सोया गुनचास भंग करिये ताको व्योरो क्रति कारित अनमोदना ए तो तीन भाग प्रत्येक अनुमोदना रात्र संजोगी भाग एक कहे ऐसे सात भंग ऐ तो तीन करनके भये बहुरि ऐसे ही सात भंग तीन जोगके जानने मन वचन काय ऐ तीन प्रत्येक इकईस जोग भंग है । मन वचन मन काय वचन काय ये तीन दोष जोगी भंग हैं । मन वचन काय ये त्रिसंजोगी भंग हैं। ऐसे ये सात तीन जोगोंका भंग हुआ सो सात करनाका भंग पूर्वे कहा । सो एक एक ऊपर स.त सात जोगांका भंग ल इये । गुनचास भंग हुये सो याका विशेष कहिये है। कृतकार मन कर । कृतकार वचन कर । कृतकार काया कर मनकर । वचन कर कृतमन काय कर । स्तमन वचन काय कर । सों ये सात तो कृत सौ भंग भये । ऐसेही ओर भी जानना कारितमन कर। कारितवचन कर । कारितमन काय कर । कारितवचन, काय कर । अनमोदना वचन कर । अनमोदना काय कर । अनुमोदना वन कर । अनुमोदना मन काय कर । अनुमोदना वचन काय कर । अनुमोदना मन वचन काय कर । कृतकारित मन कर। कृतकारित वचन कर। हतकारित मन काय कर। कृतकारित वचनकाय कर । कृतकारितमन वचन काय कर । कृत अनुमोदना मन कर। कृत अनुमोदना वचन कर । कत अनुमोदना काय कर कृत अनुमोदना मनकर वचन कर । कृत अनुमोदना मनकर काय कर । कृत अनुमोदना वचन
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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