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________________ . १३२ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । ऐसे स्त्रीका स्वरूप वर्णन किया। आगे दस प्रकार विद्या सीखनेका कारन कहिये है । ता विषै पंच बाहिनके कारन हैं । सिखावनेवाले आचार्य । पुस्तक । पड़नेका स्थानक । भोजनकी थिरता । ऊपरली चाकरी करनेवाले टहलुआ। आभिंतरके पांच निरोग शरीर । बुद्धि कषायोपषम । विनयवान । वात सल्यत्व अंग । उद्धिम एवं दश । आगे शास्त्रवक्ताका उत्कृष्ट गुन कहिये है । कुलकर ऊंच होय । पुन्यवान होय । पंडित होय । अनेक मतके शास्त्रनका पारगामी होय । श्रोताका प्रश्न पेले ही अभिप्राय जानवाने समर्थ होय। सभाचतुर होय । प्रश्न सहावनै समर्थ होय । अपने जिन मतके शास्त्र घनाके वक्ता होय । उकत जुगत मिलावनेको प्रवीन होय । लोभ कर रहित होय । क्रोध मान माया कर वर्जित होय । उदास चित होय । सम्यक्तदृष्टि होय । संयमी होय । शास्त्रोक्त क्रियावान होय । निसंक होय । धर्मानुरागी होय । अनमतके खंडवाने समर्थ होय । ज्ञान वैराज्ञका लोभी होय । परदोष ढांकवावाला होय । अरु धर्मात्माका गुनका प्रकाशक होय । अध्यात्मरसके भोगी होय । वाशिलत्व अंग सहित होय । दयालु होय । परोपकारी होय । दातार होय । शास्त्र वांच शुभका फलने नाहीं चावे । लोका बड़ाई नाहीं चाहे । एक मोक्ष ही चाहे । मोक्षके. अर्थ होय । सुपने उपदेस देवेकी बुद्धि होय । जिनधर्मकी प्रभावना करवे विर्षे आसक्त चित्त होय । संयम घनो होय । हृदय. कोमल होय । दया जल कर भीगा होय । वचन मिष्ट होय । हित मितने लिया वचन होय । सवद लजित होय । उतंग स्वर होय । और वकतापुरुष शास्त्रके वाचवे समै आंगली कठकावे
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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