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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
के गुनकी प्राप्तिके अर्थ । बहुरि कैसे हैं सिद्ध भगवान देवाधिदेव हैं। सो देव संज्ञा सिद्ध भगवान विषै ही शोभै है । अरु चार परमैष्ठिनकी गुरु संज्ञा है । बहुरि कैसे हैं सिद्ध परमेष्ठी सर्व तत्वकों प्रकाश ज्ञेयरूप नाहीं परणमैं हैं अपना स्वभावरूप हीं रहै हैं । अरु ज्ञेयको जानें ही हैं सो कैसे जाने हैं । जो ए समस्त ज्ञेय पदार्थ मानूं शुद्ध ज्ञानमें डूब गया है । कि मानूं प्रतिबिंबित हुवा है कै मानूं ज्ञानमें उकीर काड्यौ हैं। बहुरि कैसे हैं सिद्ध महाराज शांतिकरस अर असंख्यात प्रदेश भरे हैं। अरु ज्ञानरस करि अहलादित है शुद्धामृत सोई भया परम रस ताकौ ज्ञानांजलि कर पीवै हैं बहुरि कैसे हैं सिद्ध जैसे चन्द्रमाका विमान विर्षे अमृत अवै है। अरु औराकू आहलादि आनंद उपजावै है । अरु आतापकू दूर करै त्यौं ही श्री सिद्ध महाराज आप तौ ज्ञानामृत पीवै हैं वा आजरें हैं अर औराकू आहलादि आनंद उपजावै है । ताको नाम स्तुति वा ध्यान करते जो भव्य जीव ताका आताप विलै जाय है। परनाम शांत होय हैं। अर आपा परकी सिद्धि होय है अरु ज्ञानामृतनै पीवै हैं । अरु निज स्वरूपकी प्राप्त होवे है ऐसे सिद्ध भगवानको फिर भी नमस्कार होहु । ऐसे सिद्ध भगवान
जैवन्ते प्रवर्ती अरु संसार समुद्र माहींसूं काढ़ौ अरु संसार समुद्र विर्षे पड़नैतें राखौ म्हारा अष्ट कर्मको नाश करौ अरु माने अप सरीवौ करौ । बहुरि कैसे हैं सिद्ध भगवान जाकै जन्म मरन नाहीं जाकै शरीर नाहीं है, जाकै विनास नाहीं है, संसार विर्षे गमन नाहीं है, जाकै असंख्यात प्रदेश ज्ञानका आधार है । बहुरि कैसे हैं सिद्ध भगवान अनंत गुनकी खान हैं । अनंतगुन करि पूर्ण