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________________ व्याख्यान ५ : ... इस तरफ बेनातट में सुनन्दा के गर्भकाल के पूर्ण होने पर एक पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ जिसका नाम अभयकुमार रक्खा गया। वह कुमार अनुक्रम से बड़ा हुआ। उसको पाठशाला में विद्याध्ययन के लिये रक्खा गया। वहां वह सर्व कलाओं में निपुण हुआ। एक दिन उसके साथ पढ़नेवाले विद्यार्थियों से उसका झगडा हुआ जिसमें उन लड़कों ने उसको बिना बापका लडका होना कह कर हँसी उड़ाई । यह सुन कर अभय को बड़ा खेद हुआ। वह शीघ्र ही उसकी माता के पास पहुँचा और प्रश्न किया कि-हे माता ! मेरे पिता कौन हैं ? और कहाँ पर हैं ? सुनन्दा ने कहा कि-हे वत्स ! मैं नहीं जानती। किसी परदेशी मेरे साथ विवाह कर कुछ समय तक यहां रह कर चला गया परन्तु जाते समय उसने यहाँ भारवट पर कुछ अक्षर जरूर लिखे है। यह सुन कर अभयकुमारने भारवट के अक्षरों पढ़ कर पितास्वरूप जान माता से कहा कि-हे माता ! मेरे पिता तो राजगृह नगरी के राजा हैं, अतः अब हमको वहां जाना चाहिये । फिर भद्र श्रेष्ठी की अनुमति लेकर अभयकुमार उसकी माता को साथ लेकर राजगृह नगर के उद्यान में आया । वहां सुनन्दा को "बिठा कर अभयकुमारने गांव में प्रवेश किया। उपरोक्त कुए के समीप आने पर बहुत से लोगों को वहां एकत्रित हुए देख कर अभयकुमारने पूछा कि-यहां इतने लोग क्यों एकत्रित हो रहे है ? तब उन्होंने उसको मुद्रा का वृत्तान्त
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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