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________________ व्याख्यान ५९ : : ५५१ : बहार निकाले। फिर कोकाश सहित सब अपने नगर की ओर लौट गये। काकजंघ राजाने उस देश को अपने व्रत की अवधि के उपरांत होने से अपने आधीन नहीं किया । काकजंघ राजाने राज्य का पालन करते हुए यह जान. कर भी कि-गरुड़ की किली बदलने का प्रपंच उसकी दूसरी रानी का था, गंभीरता के कारण प्रकट नहीं किया। कहा भी है किअर्थनाशं मनस्तापं, गृहे दुश्चरितानि च । वञ्चनं चापमानं च, मतिमान्न प्रकाशयेत् ॥१॥ भावार्थ:-धन का नाश, मन का संताप, घर का दुरा. चरण, वंचन (किसी से ठगाये जाना) और अपमान इनको बुद्धिमान् पुरुष किसी के सामने प्रकाशित नहीं करते । इधर कनकप्रभ राजा को परिवार सहित कमलगृह से बहार निकालने के कई उपाय किये गये । लोगोंने एकत्रित हो कमलगृह को तोड़ने के लिये उस पर कुल्हाड़ी आदि का प्रहार करने लगे परन्तु वह कमलगृह न खुल कर उसके अन्दर रहनेवाले राजा आदि सबों को उन प्रहारो से पीड़ा होने लगी। अन्त में जब उनको कोई उपाय न दीख पड़ा तो उन लोगोंने अवन्ति में आकर कोकाश से अपने राजा के जीव की भिक्षा मांगी तो कोकाशने उससे कहा कि-यदि
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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