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________________ व्याख्यान २ : : २७ : पास प्रस्थान किया। उस समय उसके मातापिताने कुमार से कहा कि " हे पुत्र ! ऐसे दुर्लभ चरित्र को ग्रहण करने का पूरा यत्न करना ।" इस प्रकार कह कर आचार्य को प्रणाम कर वे वापस अपने नगर को लौट गये । तत्पश्चात् महाबल कुमारने अपने हाथों से पंच मुष्टि लोच कर गुरु द्वारा दीक्षा ग्रहण की। तीन गुप्ति और पांच समिति युक्त महाबल मुनिने विनयपूर्वक चौदह पूर्व का अभ्यास किया, विविध प्रकार की तपस्या की और बारह वर्ष पर्यंत अस्खलित चारित्र का पालन कर, सर्व पापों की आलोचना कर तथा प्रतिक्रम से एक मास का अनशन कर कालधर्म को प्राप्त हो कर ब्रह्म नामक पांचवें देवलोक में दश सागरोपम की स्थिति( आयुष्य )वाले देव हुए। चौदहपूर्वी जघन्य से भी लांतक नामक छटे देवलोक जाते हैं फिर भी यहां महाबल मुनि का पांचवे देवलोक में जाना कहा गया है जिस का कारण कुछ विस्मरण आदि हेतु से चौदहपूर्व से न्यून ज्ञान होगा ऐसा प्रतीत होता है। : वहां के आयुष्य को पूरा कर महाबल मुनि का जीव वाणिज्य नामक ग्राम में किसी बड़े श्रेष्ठी के घर में सुदर्शन नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। अनुक्रम से युवावस्था को प्राप्त करने पर एक समय उस पुर के
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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