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________________ : २६ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : मातायें बिना अंक की शून्य समान निष्फल हुई है उस प्रकार तुम भी निष्फल न हों । तुम तो शुभ अंक ( एक दो आदि ) की तरह सार्थक हो सको।" इस प्रकार कुमार के आग्रह को त्याग करने में असमर्थ होने पर उनके मातापिता मूक रह गये । ___एक समय राजाने महाबल कुमार को स्नेहपूर्वक अपने राज्यासन पर बैठा कर स्वर्ण, रूपा, रत्न और मिट्टी आदि के एक सो आठ आठ कलशों द्वारा राज्याभिषेक किया और बोला कि " हे वत्स ! कहो कि अब हम को क्या करना चाहिये ?" कुमारने उत्तर दिया कि "हे पिता! अपने कोष में से तीन लाख मोहरें ले कर उन में से मेरे लिए एक लाख मोहरें दे कर कुत्रिकापण से पात्रां लाइये, एक लाख मोहरें दे कर रजोहरण (ओघा) लाइये और केवल चार अंगुल छोड़ कर शेष सर्व केशों को काटने के लिये एक लाख मोहरें दे कर एक नाई को बुलवाइये ।" इस को सुनकर राजाने भी उस के कहने अनुसार प्रबन्ध किया । तत्पश्चात् कुमारने स्नान कर, दिव्य चन्दन का शरीर पर लेप कर, सर्व उत्तम अलंकार धारण कर, हजार मनुष्यों द्वारा उठाई जानेवाली शिबिका में आरूढ़ हो कर गुरु के १ दैवी दुकान, कि जिस में तीन भुवन की प्रत्येक वस्तु प्राप्त हो सकती थी।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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