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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : क्रिया की जा सके, अतः साधन के अभाव में साध्य (मोक्ष) का भी अभाव है ऐसा सिद्ध होता है। दूसरे वाक्य में यह गुहा (मोक्षरूपी गुहा) संसार की आसक्तिवाले जीवों के लिये दुरवगाहा (दुःख से प्रवेश करानेवाली) है तथा ब्रह्म दो हैं । पर और अपर । उन में परब्रह्म सत्य (मोक्ष) और अपर ब्रह्म ज्ञान है । इस प्रकार वेद पदों का अर्थ कर तू ऐसा विचार करता है कि-प्रथम के वेद वाक्य से मोक्ष का नहीं होना सिद्ध होता है और दूसरे पदों से मोक्ष का होना सिद्ध होता है। इस प्रकार अर्थ करने से तुझे संशय हो गया है कि-इन वाक्यों में से किन वाक्यों को प्रमाण गिनना? परन्तु हे प्रभास ! इन वेद पदों का अर्थ मैं बतलाता हूँ उस प्रकार करना चाहिये । अग्निहोत्र यावज्जीव करना चाहिये। इन में जो "वा" शब्द कहा गया है इससे यह समझना कि-मुमुक्षु पुरुषों को मोक्ष के साधनभूत क्रियानुष्ठान करना चाहिये । यह योग्य अर्थ है तथा हे सौम्य ! तू जो ऐसा भी मानता है कि-जैसे दीपक बुझ जाता है वैसे ही जीव का भी निर्वाण हो जाता है । इस विषय में कई सौगते कहते हैं कि
दीपो यथा निर्वृतिमभ्युपैति, नैवावनीं गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न कांचिद्विदिशं न कांचित् , स्नेहक्षयात्केवलमेति शान्तिम् ॥ १॥