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________________ : ४७६ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : बात सुनाने को कहा तो उसने रानी को अभय वचन दिला कर सब बात सचसच कह सुनाई । फिर रामाने सुदर्शन को हाथी पर बिठा उसके घर भेजा। ___ यह वृत्तान्त जानकर अभया रानीने मारे लजा के अपने गले में फांसी डाल शरीरान्त किया और पंड़िता पाटलिपुर में किसी वेश्या के घर जाकर रही । सुदर्शन शेठने अनुक्रम से वैराग्य प्राप्त कर दीक्षा ग्रहण की। बिहार करते हुए वे पाटलीपुर आ पहुंचे । वहां पंडिताने वहोरने के मिष उनको अपने घर पर ले जाकर घर के सब दरवजे बंध कर उनकी बहुत कदर्थना की परन्तु वे मुनि किंचित्मात्र भी चलित नहीं हुए अतः अन्त में सायंकाल को पंडिताने उन्हें छोड़ दिया । इस पर वे मुनि ग्राम के बाहर वन में जा स्मशान भूमि में प्रतिमा धारण कर खड़े रहे । वहां भी व्यंतरी होनेवाली अभया रानीने पूर्व भव के वैर से उन पर उनको अनुकूल तथा प्रतिकूल उपसर्ग किये, तिसपर भी उस मुनि का चित्त किंचित्मात्र भी चलित नहीं हुआ, वे तो शुभ ध्यान में ही स्थिर रहे । अन्त में शुक्लध्यान के योग से उनको केवलज्ञान प्राप्त हो गया । देवोंने केवली की महिमा की, उन्होंने देशना दी जिसको सुन कर अभया तथा पंडिता को प्रतिबोध प्राप्त होने से उन्होंने समकित धारण किया । सुदर्शन केवलीने चिरकाल तक केवलीपर्याय का पालन कर अन्त में मोक्षपद को प्राप्त किया ।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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