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________________ ज्याख्यान ४९ : : ४३५ : दरवाजा बारंवार क्यों टूट जाता है ! मंत्रीने उत्तर दिया कि-हे देव ! यदि आप अपने हाथ से एक पुरुष का वध कर बलिदान करें तो इस दरवाजे का अध्यक्ष यक्षदेव प्रसन्न हो सकता है अन्यथा अन्य प्रकार की पूजा, नैवेद्य या बलिदान से उसका प्रसन्न होना कठिन है । इस प्रकार चार्वाक मतानुयायी मंत्री के वचन सुन कर राजाने कहा कि-जिस नगर में जाने के लिये जीववध करना पड़े उस नगर में जाने से मुझे क्या प्रयोजन ? क्योंकि जिस अलंकार के पहिनने से कान ही टूट गिरे उस अलंकार को पहिनना ही क्यों? राजनीति भी बतलाती है किन कर्तव्या स्वयं हिंसा, प्रवृत्तां च निवारयेत् । जीवितं बलमारोग्यं, शश्वद्वान्छन्महीपतिः ॥१॥ • भावार्थ:-जीवन, बल और आरोग्यता के अभिलाषी राजा को हिंसा कभी नहीं करना चाहिये अपितु होनेवाली हिंसा का भी निवारण करना चाहिये । __राजा के इस निश्चय को जान कर मंत्रीने समग्र पुरवासीयों को बुला कर कहा कि-" हे पुरवासीयों ! यदि राजा एक मनुष्य का वध कर बलिदान दे तो यह दरवाजा स्थिर रह सकता था अन्यथा नहीं, अतः मैंने जब राजा से ऐसा करने की प्रार्थना की तो उसने उत्तर दिया कि-मैं न
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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