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________________ :४२६ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : सद्दालपुत्रने श्रीजिनेश्वर के वाक्यों से बोध प्राप्त कर गोशाला के पक्ष का त्याग कर सम्यक्त्व की यतनाओं को धारण कर स्वर्ग को प्राप्त किया है। इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभे सप्तचत्वारिंशत्तम व्याख्यानम् ॥४७॥ - व्याख्यान ४८ वां छ आगार आगाराः षड्विधाः प्रोक्ता, अपवादे जिनादिभिः। राजगुरुवृत्तिकान्तारगणदेवबलैर्युताः ॥ १ ॥ भावार्थ:-श्रीजिनेश्वरने अपवाद मार्ग से छ आगार बतलाये हैं:-राजाज्ञा से, गुरुआज्ञा से, आजीविका के कारण, समुदाय के कहने से, देव के बलात्कार से और किसी बलवान के बलात्कार से । समकित के विषय में आगार अपवाद मार्ग से बतलाये गये है, उत्सर्ग मार्ग से नहीं । कहा भी है किउस्सग्गसुअंकिंचि, किंचि अ अववायं भवे सुत्तं । तदुभयसुत्तं किंचि, सुत्तस्स भंगा मुणेयव्वा ॥१॥ भावार्थ:-कोई सूत्र उत्सर्ग का है, कोई अपवाद का
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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