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________________ : १९६ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : भर देते हैं । फिर जिस स्थान पर वे अंडगोलियें रहते हैं उस स्थान पर वे मद्य, मांस आदि लेकर आते हैं। उनको दूर से आते हुए देख कर वे अंडगोलिये उनको मारने को दौड़ते हैं, इस लिये वे व्यौपारी कदम कदम पर उनके खाने के लिये मद्य, मांसादिक से भरे हुए पात्र रखते हुए भगते जाते हैं। वे अंडगोलिये भी उनके पीछे पीछे मार्ग में पड़े हुए मद्य, मांस के पात्रों में से मांसादिक खाते खाते दौड़ते हैं। अन्त में वज्रशिला के संपुटों के समीप आकर उनमें रक्खे हुए मद्य, मांसादिक को खाने के लिये वे उनके अन्दर प्रवेश करते हैं और वे व्यौपारी अपने अपने स्थान को चले जाते हैं। उनके अन्दर मद्य, मांस खाते हुए वे पांच, छ, सात, आठ या दस दिन व्यतीत करते हैं इस बीच में वे व्यौपारी बखतर पहिन कर, खड्ग, भाला आदि शस्त्र धारण कर उस वज्रशिला के संपुटों के पास आकर सात आठ मंडल का संपुटों को घेर लेते हैं और बाद में उन्हों ने जिन संपुटों को प्रथम उघाड़ा था उसको ढक देते हैं। उनमें से कदाच एक भी अंडगोलिया निकल जाय तो वह इतना बलवान होता है कि उन सब को मार डाले । फिर वे व्यौपारी यंत्र द्वारा वज की चक्की में उनको पीसते हैं परन्तु वे अत्यन्त बलवाले होने से एक वर्ष में महावेदना पा कर मृत्यु को प्राप्त होते हैं । उनको पीसने पर उनके शरीर के अवयव चूर्ण के समान बाहर निकलते जाते हैं। उनमें से वे व्यौपारी
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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