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________________ व्याख्यान २२ : - : १९५ : सुनों-लवणसुमुद्र में जहां गंगा और सिन्धु ये दो बड़ी नदिये प्रवेश करती हैं उस स्थान के दक्षिण दिशा में जम्बूद्वीप की जगती की वेदिका से पचावन योजन दूर साढ़े बारह योजन का विस्तारवाला और साड़े छ योजन उँचा हस्ति के कुंभ. स्थल के आकार का एक द्वीप हैं । उस द्वीप में काजल (मेस), केश, मेघ और भ्रमर की कान्ति को तिरस्कार करनेवाली कान्ती की, भगंदर की व्याधि के आकार की सेंतालिस गुफाएं हैं। उन गुफाओं में जलचारी मनुष्य रहते हैं। वे प्रथम संहननवाले, मद्यपान करनेवाले, मांसाहारी, मसी के कुचे सदृश कान्तिवाले और अत्यन्त दुगंधित शरीवाले होने हैं। वे अन्डगोलिक के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके अंड की गोली को चमरी गाय के पूछ के केश से गुन्थ कर कान पर बांध कर व्यौपारी समुद्र में प्रवेश करते हैं। उसके प्रभाव से उनको कोई भी जलजन्तु उपद्रव नहीं कर सकते और समुद्र में से रत्नादिक ले कर वे व्यौपारी कुशल क्षेम से बाहर आ जाते हैं । यह सुन कर गौतमस्वामीने पूछा किहे भगवान ! वे व्यौपारी किस उपाय से उन अंडालियों को लेते हैं ? प्रभुने जवाब दिया कि-हे गौतम ! लवणसमुद्र में रत्न नामक द्वीप हैं जिसमें रत्न के व्यौपारी रहते हैं । वे समुद्र के समीप जिस स्थान पर घंटी के आकार के वज्रशिला के संपुट (दो पड़) होते हैं वहां आकर उन संपुटों को उघाड कर उनमें चार महाविकृतियें (मध, मांस, मद्य और मक्खन)
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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