SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : १३६ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : कर दोनों भाई खेदित होकर विचार करने लगे कि "अहो! हम इस पशु से भी अधम हैं कि जिससे इसके जितना भी हम न जान सकें, खैर परन्तु अब हम इस भयंकर पाप से किस प्रकार मुक्त होगे ?" इस प्रकार विचार करते हुए उन दोनों को वैराग्य उत्पन्न हुआ। इससे शासनदेवने उनको तुरन्त ही उठा कर श्रीवीरप्रभु के पास लाकर खड़ा किया । उन दोनोंने भगवंत के पास दीक्षा ग्रहण की और अनुक्रम से तपस्या कर दोनों भाई सर्वार्थसिद्ध विमान में देवता हुए । इस ओर कूणिकराजाने मन में ऐसी प्रतिज्ञा की कि "यदि मैं अपने तीक्ष्ण बाणोंद्वारा विशालानगरी का तहसनहस न कर सकूँगा तो अग्नि में प्रवेश कर अपने आपको भस्म कर दंगा।" ऐसी कठिन प्रतिज्ञा करने पर भी जब वह विशालानगरी को जीत न सका तो वह अत्यन्त दुःखी हुआ। ___ इस समय गुरु की आज्ञा का भंग करनेवाला कूलबालक मुनि जो नदी के किनारे आतापना ले रहा था उस पर कोपित हुई शासनदेवीने आकाश में रह कर कूणिक से कहा कि “ यदि मागधिका नामक गणिका कूलवालक मुनि को चारित्र भ्रष्ट कर लावे तो उसकी सहायता से अशोकचन्द्र ( कूणिक ) राजा विशाला नगरी को जीत सकेमा । उसके बिना वह नगरी नहीं जीती जा सकेगी।" यह सुन कर राजाने मागधिका गणिका को बुला कर सत्कारपूर्वक कूलबालक को भ्रष्ट कर लाने को कहा । यह बात अंगीकार कर
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy