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________________ व्याख्यान १४: : १३५ : राजाने अपने अमोघ बाणद्वारा भी कूणिक को अजय जान कर पीछा लौट गया और विशाला नगरी में प्रवेश कर दरवाजे बन्द करा दिये । इस पर कूणिकने उस नगरी के • चारों ओर घेरा डाल दिया। रात्रि के समय में हल्ल और विहल्ल सेचनक हाथी पर आरुढ़ होकर नगर से बाहर निकले और गुप्त रीति से कुणिक के सैन्य में प्रवेश कर उस सैना का विनाश करने लगे । इस प्रकार प्रत्येक दिन अपने सैन्य का नाश होता देख कर कूणिकने अपने सैन्य के चारों ओर एक खाई खुदवाई और उसमें गुप्त रूप से खेर के अंगारे भरवा दिये । हल्ल विहल्ल को इसका पता नहीं होने से सदैव के नियमानुसार वे रात्री के समय में सेचनक हाथी पर आरुढ़ होकर सैन्य के समीप आपे । खाई के समीप आने पर हाथीने विभंगज्ञान से जलते हुए अंगारे की गुप्त खाई को देख कर " इन हल्ल विहल्ल का विनाश न हो" इस हेतु से एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा । यह देख कर उन दोनों भाइयो ने अंकुशद्वारा उस पर प्रहार कर कहा कि “हे दुष्ट हाथी ! आजतू प्रतिकूल आचरण करता है जो तेरे लिये अयोग्य है।" यह सुन कर उन दोनो को उसकी पीठ से भूमि पर उतार कर वह हाथी खाई में कूद पड़ा । उस खाई के अन्दर की अग्नि के ताप से भस्म होकर मृत्यु को प्राप्त कर वह हाथी प्रथम स्वर्ग में देवता हुआ। इस प्रकार हाथी को मरा जान
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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