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________________ : १२८ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : की वाट जोते राह में बैठे हुए चोरों के पास आई । चोरों ने पूछने पर उसने माली तथा राक्षस के साथ होनेवाले सब हकीकत बतलाई । जिसे सुन कर उन्होंने कहा कि " अहो ! क्या हम उन दोनों से भी अधम कहलायेगें ? " ऐसा विचार कर उन्होंने भी उसको बहन के समान समझ कर उसका सन्मान कर जाने की आज्ञा दी । फिर घर आ कर उसने यह सब हाल उसके पति से कहा । यह सुन कर वह भी अत्यन्त आनन्दित हुआ और उसके साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा । इस प्रकार कथा कह कर अभय मंत्रीने सब से पूछा कि " हे भाइयों ! बतलाओं कि उस स्त्री का पति चोर, राक्षस और माली इन चारों में से किसने दुष्कर काम किया ?" अभयकुमार के प्रश्न के उत्तर में जो स्त्री के इर्ष्यालु थे उन्होंने कहा कि " हे मंत्री ! अपनी नवविवाहिता सुन्दर युवा स्त्री को माली के पास जाने की जिस पतिने आज्ञा दी उसने बहुत दुष्कर कार्य किया हैं । " जो क्षुधातुर थे उन्होने कहा कि " राक्षसने भूखे होने पर भी उसको जाने की आज्ञा दी अतः राक्षसने बहुत दुष्कर कार्य किया । " लंपट पुरुषोंने कहा कि " ऐसी स्वरूपवान स्त्री को जैसी की तैसी वापस जाने दिया उस मालीने बहुत दुष्कर कार्य किया । " अन्त में आम्रफल के चोरनेवाले चाण्डालने उन चोरों की प्रशंसा की । यह सुन कर अभयकुमार मंत्रीने तुरन्त ही उस चाण्डाल को पकड़ लिया । फिर
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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