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________________ व्याख्यान १३: : १२७ : "अहो ! यह स्त्री सत्यप्रतिज्ञ जान पड़ती है।" यह सोच कर उसने उसको आज्ञा दी । आज्ञा पाकर वह स्त्री मणि, मोती और स्वर्ण के अलंकार तथा उत्तम वस्त्र पहन घर के बाहर निकल उद्यान की तरफ चली । मार्ग में उसको चोरों ने आधेरा और उसको सर्व वस्त्र तथा आभूषण उतार कर दे देने को कहा, इस पर उसने अपना सब वृत्तान्त उनको सुना कर कहा कि "हे भाइयों ! मैं अभी जाकर वापीस आती हूँ उस समय तुम्हें कहने अनुसार करुंगी, अभी तो जाने दो।" यह सुन कर चोरोंने उसे जाने दिया। आगे बढ़ कर एक क्षुधापीडित राक्षसने उसको देख कर रोका । उसको भी चोर के समान सत्य वृत्तान्त सुना कर पीछा लौटने का वचन दे कर माली के पास पहुंचीं। माली को कहा किमैने तेरे को पहले वचन दिया था इस से उसको पूरा करने के लिये आज विवाहित होने से तेरे पास आई हूँ। यह सुन कर मालीने विचार किया कि 'अहो ! यह कैसी सत्यप्रतिज्ञ है ? ' ऐसा विचार कर उसको अपनी बहन बना कर वस्त्रादि से सन्मान कर वापीस लौटाई। फिर वापीस लौटते समय उसने राक्षस के पास जा कर उसके पूछने पर माली का उनको बहन बनाना व वस्त्रादि देने का सर्व वृत्तान्त कहा । जिस को सुन कर राक्षसने सोचा कि " अहो! क्या मैं माली से भी अधम हूँ?" ऐसा विचार कर उसको मुक्त किया। वहां से चल कर वह उस
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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