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________________ : १०८ : श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : नंदि ग्राम में सोमिल नामक ब्राह्मण के सोमिला नामक स्त्री से नंदिषेण नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । उस पुत्र की बाल्यवस्था में ही उसके माबाप मर चुके थे । नंदिषेण मस्तक के केश से लगा पेर के नख तक कुरूप था। उसके नेत्र बिल्ली के नेत्र के समान मांजरे थे, उसका उदर गणेश के समान मोटा था, उँटके समान होट लम्बे थे और हाथी के समान उसके दांत बाहर की ओर निकले हुए थे । उसको दुर्भागी जान कर उसके स्वजनोंने भी उसको छोड़ दिया था इस लिये वह मामा के घर जाकर दासकर्म करने लगा । अत्यन्त कुरूप होने से उसको किसी ने अपनी कन्या नहीं दी । इससे उसे अत्यन्त खेदीत देखकर उसके मामाने उससे कहा कि " तू खेद न कर, मेरे सात कन्यायें हैं उनमें से मैं एक तुझको दूंगा ।" बाद में उसने उसकी सब लडकियों को अनुक्रम से नंदिषेण के साथ विवाह करने को कहा तो सब बोली कि - हम विष पी लेंगी अथवा गले में फांसी लगा लेंगी परन्तु नंदिषेण को पतिरूप से अंगीकार नहीं करेगी । उसके मामा को निरुपाय हुआ जानकर नंदिषेण को इतना खेद हुआ कि उसने उसके मामा के घर को छोड़ कर वन में जाकर भृगुपात कर मरने की तैयारी की कि इस बीच में उसने समीप ही एक मुनि को कायोत्सर्ग कर खड़े हुए देखा । १. पर्वत के उँचे शिखर से गिर कर मर जाना । इसको भैरवजव भी कहते हैं ।
SR No.022318
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
PublisherVijaynitisuri Jain Library
Publication Year1947
Total Pages606
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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