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॥ णमो वीयरायाण सव्वण्णूणं ॥
पूर्वकथन
स्वाध्यायधर्मनी महत्ता
स्वाध्याय ए तपधर्मनी आराधनानुं महत्त्वपूर्ण अंग छे, प्रायश्चित्त आदि छ प्रकारना अभ्यन्तर तपधर्मना एक प्रकार तरिके स्वाध्यायनी गणना छे. स्वाध्याय विना तपधर्मनी आराधना अखंडित रही शके तेम नथी. आत्मशुद्धि अने आत्मजागृतिना वातावरणने सरजाववामां स्वाध्यायनी अति आवश्यक्ता छे. _ 'सुष्टु अध्ययनम् ' ए स्वाध्याय शब्दनो व्युत्पत्तिगत भाव छ. आत्मपरिणामनी निर्मलता तेमज कठीन कर्मोनी निर्जरा माटे आ स्वाध्याय नामनो तपधर्म साचेज परम आलंबन छे. माटे ज तत्त्वज्ञानी पुरुषो, कल्याणकारी आराधक आत्माने एज मूजबनी हितशिक्षा पाठवी रह्या छे-के "स्वाध्यायान्मा प्रमदः-स्वाध्यायना मार्गने तुं भूल नहि"