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________________ ४. प्रादानभंडमत्तनिक्षेपरणा समिति-किसी भी वस्तु को उठाते या रखते समय उपयोग रखना कि किसी जीव की हिंसा न हो जाय, उसे आदानभंडमत्तनिक्षेपणा समिति कहते हैं । ५. पारिष्ठापनिका समिति-मल-मूत्र आदि का निर्जीव भूमि में उपयोगपूर्वक विसर्जन करने को पारिष्ठापनिका समिति कहते हैं। (2) तीन गुप्तियाँ . १. मनोगुप्ति-मन की अशुभ प्रवृत्ति का निरोध करना और शुभ में प्रवृत्ति करना मनोगुप्ति है। समिति में सम्यग् आचरण की मुख्यता है और गुप्ति में अप्रशस्त के निरोध की मुख्यता है। मनोगुप्ति के तीन प्रकार हैं (अ) अकुशल निवृत्ति-पात और रौद्रध्यान के विचारों का त्याग करना 'अकुशल निवृत्ति' मनोगुप्ति है । (प्रा) कुशल प्रवृत्ति-धर्मध्यान और शुक्लध्यान में मन का प्रवर्तन करना कुशल प्रवृत्ति मनोगुप्ति है। (इ) योगनिरोध-मन की कुशल-अकुशल सर्व प्रवृत्ति का निरोध करना योगनिरोध मनोगुप्ति है, जो चौदहवें गुणस्थानक में होती है। २. वचन गुप्ति-सावध वचन का त्याग कर, अनिवार्य परिस्थिति में ही हितकारी व निरवद्य वचन बोलना वचनगुप्ति कहलाती है। शान्त सुधारस विवेचन-२३८
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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