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________________ विवेचन शरीर कभी स्वच्छ नहीं हो सकता इस शरीर में जो भी पवन जाता है, वह इस शरीर के सम्पर्क में आते ही दुर्गन्धित बन जाता है । चन्दन - वन के पर्वतों से आने वाला पवन भी इस साथ दुर्गन्ध में परिवर्तित हो जाता है । मलयाचल के देह में प्रवेश के नाक फूल की खुशबू ग्रहरण करता है, किन्तु उस खुशबू को ग्रहण करने के बाद भी इस नाक में से कैसा पवन बाहर निकलता है ? दुनिया के समस्त सुगन्धित पदार्थों को दुर्गन्धित बनाने वाला यह शरीर है । शहर में जितनी भी गन्दगी है, उन सबका जनक यह मानव शरीर है । ओह ! फिर भी आश्चर्य, कि ऐसे गन्दे देह को आकर्षक बनाने के लिए मनुष्य नाना सौन्दर्य-प्रसाधनों का उपयोग करता रहता है और फिर इस देह को बारम्बार सूंघता है, चाटता है । क्या इस मलिन देह को पास में रखकर शौचधर्म का पालन हो सकता है ? तू जल से भले ही बाहर की गन्दगी को साफ कर दे, परन्तु अन्दर की गन्दगी थोड़े ही साफ होने वाली है । शान्त सुधारस विवेचन - १९७
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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