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________________ इस प्रकार हर जन्म में किसी-न-किसी देह के साथ जीवात्मा का सम्बन्ध रहता ही है। देह के बिना जीवन अशक्य है । ज्ञानियों ने मानव-देह को मुक्ति का साधन बतलाया है । अनुत्तरवासी देवों को भी मुक्ति पाने के लिए मानव-गर्भ में आना ही पड़ता है और गर्भावास आदि की पीड़ा भी भोगनी पड़ती है। परन्तु अफसोस ! मोक्ष के साधनभूत मानव-देह की प्राप्ति के बाद भी मोहाधीन आत्मा उस देह के राग में अत्यन्त आसक्त बन जाती है और मोक्ष के साधनभूत देह को ही अपना साध्य बना देती है। फिर चौबीस घंटे उसी की सेवा""उसी की शुश्रूषा। देह में आसक्त भव्यात्माओं की सुषुप्त अन्तश्चेतना की जागृति के लिए पूज्य उपाध्यायजी म. प्रात्म-सम्बोधनपूर्वक प्रेरणा देते हुए फरमाते हैं कि यह शरीर मल से व्याप्त है। मल से ही इस शरीर का सर्जन हुआ है। मल से ही इस शरीर की वृद्धि हुई है। जैसे तालाब में चारों ओर कीचड़ होता है, किन्तु उसके बीच भी खिले हुए कमल होते हैं, जो कीचड़ से सर्वथा अलिप्त होते हैं। इसी प्रकार इस देह रूप तालाब में मल रूप कीचड़ के बीच अत्यन्त तेजस्वी प्रकाश के पुज स्वरूप चेतन द्रव्य है । तालाब के पास जाकर कोई कीचड़ की मांग नहीं करता है, बल्कि खिले हुए कमल ही देखता और ग्रहण करता है । शान्त-१३ शान्त सुधारस विवेचन-१९३
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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