SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ - मूढ़ प्रारणी बारम्बार स्नान करके मल से युक्त इस शरीर को शुद्ध जल से साफ करता है, उसके बाद उस पर चन्दन का लेप करता है और उसके बाद 'हम मल से मुक्त बन गए' इस प्रकार प्रीति का श्राश्रय करता है । किन्तु वह कभी शुद्ध नहीं होता है, क्या कचरे के ढेर को किसी प्रकार से शुद्ध किया जा सकता है ? ।। ७२ ।। विवेचन शरीर मल का घर है इस शरीर की शुद्धि के लिए व्यक्ति कितने प्रयत्न करता है ? पहले विविध तेलों से मालिश करता-करवाता है, फिर गर्म जल से स्नान करता है, फिर सुगन्धित साबुन लगाता है, पुनः ठण्डे - गर्म जल से स्नान करता है । स्नान के बाद शरीर को पोंछकर उस पर चन्दन के तेल का विलेपन करता है, शरीर पर इत्र आदि लगाता है। सिर पर सुगन्धित तेल लगाता है । नयी-नयी डिजाइन के कीमती वस्त्र पहनता है और इस प्रकार तैयार होकर दर्पण में अपना मुँह देखकर खुश होता है और मन में अहंकार करता है - " वाह ! मैं कितना सुन्दर हूँ, मेरा चेहरा कितना चमक रहा है ।" परन्तु उपाध्यायजी म. कहते हैं कि शरीर को सौन्दर्यप्रसाधनों से चमक-दमक वाला करने में कोई फायदा नहीं है । वे तो कहते हैं कि 'क्या उकरड़े को कभी साफ किया जा सकता है ?' प्रत्येक गाँव में, गाँव के बाहर उकरड़ा होता है, जहाँ सभी कचरा डालते हैं । शान्त सुधारस विवेचन- १८२
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy