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________________ विवेचन पर-भाव में रमरणता का परिणाम चोर के संग से साहूकार भी चोर कहलाता है और उसे भी चोरी की सजा होती है । आत्मा ने पर-पदार्थों का संग किया, उनके साथ दोस्ती की, इसके फलस्वरूप उसे नरक में जाना पड़ा । परमाद्यामियों ने नरक में इस जीवात्मा का छेदन किया, भेदन किया । तपे हुए तेल में इसे तला । अपना ही मांस उसे खिलाया | तिर्यंच योनि में जीवात्मा ने कम यातनाएँ सहन नहीं की है । गधे की योनि में उस पर मर्यादा से अधिक भार लादा गया। घोड़े को योनि में उसने चाबुकों की मार खाई । बकरे की योनि में उसे छुरी से काटा गया । चूहे की योनि में वह बिल्ली का शिकार बना । दुनिया में ऐसी कोई यातना नहीं है, जो इस जीवात्मा ने सहन नहीं की हो। परन्तु प्रश्न होता है इन सब यातनाओं का कारण क्या ? अनन्त सुख की भोक्ता श्रात्मा की संसार में यह दुर्दशा कि वह एक-एक दाने के लिए घर-घर भटके | इसका प्रत्युत्तर पूज्य उपाध्यायजी म. देते हैं कि इन सब यातनाओं का एकमात्र कारण परकीय वस्तु का ही है । विलास • संभूति मुनि स्व-साधना में तल्लीन थे । उत्कट तप की साधना कर उन्होंने आत्मानन्द की मस्ती प्राप्त की थी । परन्तु शान्त सुधारस विवेचन- १५५
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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