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________________ मिल सकती हैं। कभी व्यक्ति रोता है, कभी हँसता है, कभी शोक करता है, तो कभी मस्ती में पागल सा बन जाता है। पूज्य उपाध्यायजी म. कहते हैं कि तू इतनी मेहनत करता है, कभी खुश होता है, कभी नाराज होता है, कभी रोता है, कभी हँसता है; तू इन सब विरोधी परिस्थितियों को भोगता है, परन्तु जरा विचार कर, तेरा यह सब प्रयत्न तो पर के लिए है। इसमें से तुझे अपना कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है। तेरी यह सब मेहनत निष्फल जाने वाली है। प्रात्मा का जो निर्मल स्वभाव है, उसे पाने के लिए तो तेरा कुछ भी प्रयास नहीं है। उसके लिए तू प्रयास कर । दुष्टाः कष्टकदर्थनाः कति न ताः सोढास्त्वया संसृतौ, तिर्यङ्नारकयोनिषु प्रतिहतश्छिन्नो विभिन्नो मुहुः । सर्व तत्परकीयविलसितं विस्मृत्य तेष्वेव हा, रज्यन्मुह्यसि मूढ ! तानुपचरन्नात्मन्न कि लज्जसे ॥६१॥ (शार्दूलविक्रीडितप्) अर्थ-इस संसार में महादुष्ट और कष्टकारी किन-किन कदर्थनाओं को तूने सहन नहीं किया है। तिर्यंच और नरकयोनि में बारम्बार मार खाई है, तुझे छेदा गया है, भेदा गया है, यह सब अन्य वस्तुओं का दुर्विलास ही है। अहो ! खेद है कि उसे भूलकर पुनः अन्य वस्तुओं में राग करता है। हे मूढ़ आत्मन् ! इस प्रकार की चेष्टा करते हुए तुझे लज्जा भी नहीं आती है ।। ६१ ॥ शान्त सुधारस विवेचन-१५४
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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