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________________ प्रातःकाल के प्रकाश के पूर्व नमिराजा एक स्वप्न में लीन थे। स्वर्ण के मेरुपर्वत पर उन्होंने अपने आपको घूमते हुए देखा। और फिर तो उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो गया। पूर्व के तीसरे भव में एकता-समता की साधना करने वाले वे एक साधक महात्मा थे। उस जोवन को पूर्ण कर वे देव बने थे । उस देवभव में सैकड़ों तीर्थंकरों के जन्माभिषेक का महोत्सव इसी मेरुपर्वत पर उन्होंने किया था। गत जन्म के इस जातिस्मरण ज्ञान ने उनके विराग के दीप को अधिक प्रज्वलित किया और प्रातः होते ही वे त्याग की यात्रा पर प्रयाण कर गए। सारी मिथिला विलाप कर रही थी। नमिराजा के इस संसार-त्याग से मिथिलावासियों के चेहरों पर गाढ़ उदासीनता नजर आ रही थी। चारों ओर से क्रन्दन की आवाज सुनाई दे रही थी। किन्तु नमिराजा अपने संकल्प पर दृढ़ थे। वीरों का संकल्प पत्थर की लकीर होता है। वे उस क्रन्दन से पीछे हटने वाले नहीं थे। ब्राह्मण के वेष में इन्द्र महाराजा ने पाकर उनकी परीक्षा ली। नाना प्रकार की समस्याएँ प्रस्तुत की, परन्तु नमिराजा के प्रत्युत्तर को सुनकर इन्द्र महाराजा भी चकित रह गए। इस प्रकार एकत्व भावना की चिनगारी में से विराग के रागी बनकर अन्त में नमि राजर्षि वीतराग बन गए। शान्त सुधारस विवेचन-१३२
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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