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________________ धन की चिन्ता हुई और धन के लिए पुरुषार्थ प्रारम्भ किया। धन को कुछ प्राप्ति हो, तब तक पुत्र की बीमारी की अन्य समस्या खड़ी हो जाती है। पुत्र के स्वास्थ्य के लिए वह दौड़-धूप करता है, वह कुछ ठीक होता है, तब तक तो माँ की मृत्यु के कर्णकटु समाचार उसे सुनने पड़ते हैं और उस शोक में वह डूब जाता है। सतत चिताओं से ग्रस्त होने के कारण वह जीवित ही जलता रहता है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है चिता चिता से बढ़कर है, घुन लग जाती है। चिता मुर्दे को जलाती है, चिता जीते जी खाती है । इस प्रकार दु:ख के प्रावर्त में गिरने के स्वभाव वाले इस प्राणी को इस संसार में क्षण भर के लिए भी शान्ति कहाँ से मिल सकती है ? सहित्वा सन्तापानशुचिजननीकुक्षिकुहरे , ततो जन्म प्राप्य प्रचुरतरकष्टक्रमहतः। सुखाभासर्यावत् स्पृशति कथमतिविरतिं , जरा तावत्कायं कवलयति मृत्योः सहचरी ॥ ३४ ॥ (शिखरिणी) अर्थ-जीव गन्दगी से भरपूर माँ की कुक्षि रूपी गुफा में सन्तापों को सहन कर जन्म प्राप्त करता है और उसके बाद अनेक प्रकार के महान् कष्टों की परम्परा को प्राप्त करता है, किसी प्रकार से सुखाभासों से जब दुःख से विराम पाता है, तब मृत्यु की सहचरी जरावस्था उसके देह को खाने लग जाती है ।। ३४ ॥ शान्त सुधारस विवेचन-६१
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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