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________________ अवतरण :- गुरु वंदन के पांच नाम (प्रथम दार) । वंदणयं चिड़कम्म, किइकम्मं विणयकम्मं पूअकम्म। गुरुवंदण पणनामा, दब्बे भावे दुहोहेण (दुहा हरणा)||१०|| शब्दार्थ:- पणनाम-पांच नाम, दुहा=दो प्रकार, ओहेण ओघसे, सामान्य से, आहरण उदाहरण, द्रष्टान्त . गाथार्थ:- वंदनकर्म, चितिकर्म, कृतिकर्म, विनयकर्म, और पूजाकर्म इस प्रकार गुरुवंदन के पांच नाम है। पूनः प्रत्येक नाम ओघसे (सामान्यतः) द्रव्य से और भावसे, दो प्रकार से द्रष्टांत जानना ॥१०॥ विशेषार्थ :-घट के जिस प्रकार घट कुंभ-कलश इत्यादि अलग अलग नाम है, लेकिन घट वस्तु एक ही है, वैसे ही वंदन कर्म, चितिकर्म आदि भी गुरुवंदन के पर्यायवाची नाम है। फिर भी व्युत्पत्ति के भेदसे यत् किंचित् भिन्नता है, वो इस प्रकार है। ...... || गुरु वंदन के पांच नामो के अर्थ || (१). प्रशस्त मन, वचन, काया के व्दारा (वंदना)स्तवना करना, उसे वंदनकर्म कहा जाता है। (२). रजोहरण (ओघा) आदि उपधि सहित शुभ कर्म का चिति-संचयन करना उसे. |.. चितिकर्म कहाजाता है। (३). मोक्ष के लिए नमस्कार, नमन आदि विशिष्ट क्रियाएँ करना उसै कृतिकर्म कहाजाता है। (४). मन, वचन और काया के द्वारा प्रशस्त व्यापार उसे पूजाकर्म कहाजाता है। (५). जिसके द्वारा कर्मोका विनाश हो वैसी (गुरु के प्रति अनुकुल प्रवृत्ति) उसे विनयकर्म कहा जाता है। (आवश्यकवृत्तिः) अवग्रह २ के स्थान पर एक ही गिनाया है, अर्थात् कुल ३०० भेद नही गिनाये है । और . मान' अविनय', निंदा' (रिंवसा), नीचगोत्र बंध,-अबोधि',-तथा भववृद्धि -आदि ६ दोष वंदन नही करने वाले को विशेष गिनाये हैं-अतः (४९२-३००=१९२+६)= १९८ बोल गिने है। (धर्म ० सं० वृत्तिः) 89
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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