SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांच गुरुवंदन द्रव्य से और भाव से यहाँ पर द्रव्य शब्द अप्राधान्य वाचक, और भाव शब्द प्रधान्य वाचक (उत्तम श्रेष्ठ अर्थवाला) रामजना । जो वंदनादि क्रियाएँ सम्यक् प्रकार के फल को न दे सके, उसे द्रव्य गुरु वंदना - २ - समजना । सम्यक् प्रकार के फल को दे सके वैसी वंदनादि क्रिया भाव वंदना समजना । अर्थात् मिथ्याद्रष्टि जीव की गुरुस्तवना, तथा उपयोग रहित सम्यग्द्रष्टि की गुरुस्तवना वह द्रव्य वंदन कर्म है। और उपयोग पूर्वक सम्यग्द्रष्टि द्वारा की गयी गुरुस्तवना भाव वंदन कर्म है। तथा तापस विगेरे मिथ्याद्रष्टि जीवोंकि तापसादि योग्य उपधि उपकरण पूर्वक कुशल क्रिया, अर्थात् तापसादि के उपकरणों का संचय (ग्रहण) और उसके द्वारा तापसादि क्रिया, और सम्यग्द्रष्टि जीवों की उपयोग रहित रजोहरणादि उपधि पूर्वक कुशल क्रिया उसे द्रव्य चिति कर्म समजना । और उपयोग पूर्वक सम्यग् द्रष्टि की रजोहरणादि उपकरण पूर्वक की क्रिया भावचिति कर्म है । तथा निह्न व विगेरे ( मिथ्याद्रष्टि) की और उपयोग रहित सम्यग् द्रष्टि की नमस्कारक्रिया द्रव्य कृति कर्म है और उपयोग पूर्वक सम्यग् द्रष्टि की नमस्कार (नमन) क्रिया वह भाव कृति कर्म है । तथा मिथ्याद्रष्टि की और उपयोग रहित सम्यग्द्रष्टिओं की मन-वचन-काया के विषय की क्रिया द्रव्य पूजा कर्म है, और उपयोग पूर्वक सम्यग् द्रष्टि जीवों की प्रशस्त, मन-वचन-काया संबंधि क्रिया भावपूजा कर्म है। तथा मिथ्याद्रष्टिओं का और उपयोग रहित सम्यग् द्रष्टि जीवों का गुरुविनय द्रव्य विनय कर्म है, और उपयोग पूर्वक सम्यग् द्रष्टि द्वारा किया गया गुरुवंदन भाव विनय कर्म कहलाता है। (इति आव० वृत्ति० तथा प्रवचन सारोद्धार वृत्ति के अनुसार) इन पाँच में से इस भाष्य में मुख्य विषय तीसरे कृतिकर्म के विषय में है, इस प्रकार समजना । यह पांच वंदन में से इस भाष्यमें मुख्य विषय तीसरा कृति कर्म संबंधीत है ऐसा जाणना (दूसरा द्वार पाँच वंदन के पांच दृष्टान्त) अवतरण :- दूसरे उदाहरण द्वार में द्रव्य व भावसे वंदन किसने किया ? उसके द्रष्टान्त दर्शाये गये है। 90
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy