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________________ ... (२) छोभ वंदन - ये वंदन साधु अधिक दीक्षा पर्याय वाले साधु को । साध्वी अधिक दीक्षा पर्यायवाले साधु व साध्वी को तथा लघुपर्याय वाले साधु' को वंदन करें। श्रावक साधु को और श्राविका साधु व साध्वी को पंचांग प्रणिपात वंदन करे । इस प्रकार खमासमणपूर्वक गुरूवंदन 'साधु -साध्वी को ही किया जाता है । लेकिन श्रावक चाहे . कितना भी भाव से चारित्र की इच्छा वाला तथा उत्कृष्ट क्रिया पात्र क्यों न हो, फिर भी ऐसे श्रावक को 'खमासमणे दारा वंदन नहीं किया जाता है, और यदि कोई वैसा आचरण करे तो उसे जिनेन्द्र आज्ञा का महाघातक कहा गया है। .) बादशावर्त वंदन:- ये वंदन साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका पदवीधर आचार्यादि को ही किया जाता है। और समान पदवीधर अधिक दीक्षा पर्याय वालें (रत्नाधिक) को वंदन करते है, उसका विशेष स्वरुप गाथा नं. ३ में दर्शाया गया है। (आव० नियुक्ति में दर्शाये गये ( बार) . अवतरण:- अब ग्रंथ कर्ता (स्व रचित गाथाओं द्वारा नहि लेकिन) सिद्धांत के प्रति अपनी भक्ति द्वारा श्री आवश्यक नियुक्ति में कही गयी दो गाथाओं द्वारा द्धादशावत वंदन की विधि को दर्शाने वाले : दारों के नाम कहते हैं। वंदण-चिह-किकम्मं, पूयाकम्मं च विणयकम्मं च। . कायव्वं कस्स व केण वावि काहे व कहखुतो ॥३॥ कह ओणयं कह सिरं, 'कहिं व आवस्सएहि परिसद्ध । कह दोस विप्पमुळं, किइंकम्मं कीस कीरहवा ॥६॥ (१) ज्ञानादि गुण में अधिक हो, या सौ वर्ष की दीक्षित साध्वी हो, फिर भी एक दिन के दीक्षित साधु को भी ऐसी साध्वी, खमासमण पूर्वक वंदन करे, इस प्रकार के धर्म में पुरुष की प्रधानता मुख्य है, ऐसी श्री जिनेन्द्र सिद्धान्त की मर्यादा है । (२) (कोई अवश्य) कारण से गुणरहित वेषधारी साधु को भी वंदन किया जा सकता है। (३) वर्तमान समय में कितनेक श्रावक अपने “आत्मज्ञान" का दोंग रचाकर स्वयं को भाव साधु मानकर अपने भक्त श्रावक श्राविकाओं से खमासमण दारा वंदन करवाते हैं, अथवा भक्त भक्ति के कारण खमासमण देते है । फिर भी उन्हें मना नहीं करते हैं, इस प्रकार सुना जाता है, यदि ये दोनों बातें सत्य है तो दोनों ही परमात्मा की आज्ञा के विराधक है । कइ विह (=कितने) ऐसा पाठ भी है। 85
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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