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________________ = = शब्दार्थ : तइयं = तीसरा वंदन, छंदण वंदनक में, वांदणा में, दुगे = दो बार के, तत्थ = वहाँ, ३ प्रकार के वंदन में, मिहो= मिथ, परस्पर, आइमं प्रथम (फिट्टा ) वंदन, सयल = समस्त, सर्व; संघे = संघ में, संघ को; बीयं = दूसरा (छोभ) वंदन दंसणीण : दर्शनी को, मुनि को; पय = पदवी में, हियाणं रहे हुए मुनि को, तइयं = तीसरा ( द्वादशा० ) = H वंदन गाथार्थ: तीसरा व्दादशावर्त वंदन दो वंदनक द्वारा (दो वांदणे देने के द्वारा) किया जाता है। तथा इन तीन वंदन में प्रथम फिट्टावंदन संघ में संघ को परस्पर किया जाता है । दूसरा छोभ वंदन (खमासमण वंदन) साधु-साध्वी को ही किया जाता है। और तीसरा व्दादशावर्त्त वंदन आचार्य आदि पदवीधर मुनिओं को किया जाता है ॥४॥ विशेषार्थ : प्रथम गाथा में दो प्रकार के वंदन का विश्लेषण करने के बाद इस चौथी गाथा में तीसरे प्रकार के वंदन के बारे में कहा गया है तीनों ही प्रकार के वंदन क्रमश: इस प्रकार है. तीन प्रकार की गुरुवंदना किस प्रकार की जाती है ? (१) फिट्टा वंदन - शीर्ष झुकाने से, हाथ जोड़ने से, अंजलि रचने से अथवा पाँच अंगों में यथायोग्य १-२-३ या ४+ अंग द्वारा नमस्कार करने से फिट्टावंदन होता है । (२) छोभ वंदन - पाँचों अंगों को झुकाते हुए खमासमण देने से छोभ वंदन (पंचांग वंदन) होता है । (३) ब्यावशावर्त वंदन - 'अहो काय काय' इस प्रसिद्ध पद वाले वंदनक सूत्र से ( आगे कही जाने वाली विधि की तरह ) ये तीसरा वंदन होता है। इस गुरूवंदन भाष्य में मुख्य अधिकार व्दादशावर्त वंदन विधि का ही कहा जायेगा । इस प्रकार तीनों ही प्रकार के गुरुवंदन का सामान्य विधि कहने के बाद, कौनसा वंदन किसे किया जाता है ? वह दर्शाया जा रहा है।... " ३ प्रकार के गुरुवंदन किस को करना ?” १) फिट्टा वंदन - ये वंदन संघ में संघ को परस्पर किया जाता है, अर्थात् साधु साधु को, साध्वी साध्वी को, श्रावक श्रावको और श्राविका श्राविका को परस्पर फिट्टा वंदन करे। अथवा श्रावक साधु विगेरे चार को, और श्राविका भी साधु विगेरे चार को, साध्वी साधु साध्वी को तथा साधु मात्र साधु को ही फिट्टा वंदन करे । + इन चार प्रकार के नमस्कारों का वर्णन चैत्यवंदन भाष्य के अर्थ प्रसंग में किया गया है, वहाँ से जानकारी प्राप्त करें । 84
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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